Sunday 11 December 2016

Episode 5


fb link
निशा - मदद ? तुम मेरी मदद कैसे कर सकते हो ?
समीर - तुम एक बार भरोसा तो कर के देखो शायद सिर्फ़ मैं ही तुम्हारी मदद कर सकता हूँ!तुम एक बार मुझे बता के तो देखो कि आख़िर ऐसी कौनसी विचारों कि लहरें है जिसमे तुम बह जाती हो ? आख़िर विचारों की कौनसी नदी है जिसमें तुम डूब जाती हो ?ऐसा भी क्या हो गया है तुम्हारे साथ कि तुम खयालों मैं ओझल होकर खोयी-खोयी रहने लगी हो?

निशा - (हँसते हुए) अच्छा !इन सवालों का अगर तुम जवाब चाहते हो तो बताओ मुझे की 
हम कैसे किसी अनजान पर इतना विश्वास करने लगते है की अपनों को ही भूल जाते हैं?
और क्यों हमे बस वही पहलू दिखता है जो हम देखना चाहते हैं। और वो नहीं जो सच्चाई होती है? बातों की गहराइयों को हम क्यों नही समझना चाहते?
समीर - मुझे इन सब सवालों का जवाब देना तो चाहिए।पर तुम यह तो बताओ की तुम यह सब पूछ क्यों रही हो?

निशा - तुम ये समझ लो की हो सकता है यह बात मेरी अपनी ही ज़िंदगी से जुड़ी हो ,मेरी ही कोई दोस्त मुझसे ज़्यादा किसी और के झूठ पर विश्वास कर रही हो ।
समीर -अगर किसी को ऐसा लगता है की उसका दोस्त मुसीबत में है और दोस्त यह नही जानता की वह ग़लत है ।तो तुम्हारा फ़र्ज़ है उसे समझाना की उसने जो राह चुनी है वह गलत है और उस राह की कोई मन्ज़िल ही नही है।वो डगर उसे ऐसे मोड़ पर ले जाएगी जहां से वापस आना मुश्किल हो जाएगा

निशा - सलाह देना हमेशा आसान होता है!ऐसे केसे मैं खो दु अपने दोस्त को? हो सकता है वो मुझसे दोस्ती ही ख़त्म कर दे। तो इस से अच्छा तो यह है ना की मैं उसको उसकी ख़ुशी में ख़ुश रहने दूँ।

समीर - ज़रूर !तुम ऐसा कर सकती हो। पर सोचो क्या यह सही होगा की तुम सब कुछ जानते हुए भी अपने दोस्त को मुसीबत में छोड़ दो। तुम उसकी दोस्त हो तो तुम कैसे भी उसे समझाओ और वो भी तो तुम्हारी ही दोस्त है कब तक वो तुम्हारी बात नही सुनेगी।कभी न कभी तो वो होना ही है ना जिसका तुम्हे डर है। और सच बात तो यह है कि पूरी गलती तुम्हारी दोस्त की भी नही है। जब प्यार होता है तो इंसान कुछ नही सोचता।कोई रिश्ता नही देखता।बस प्यार मैं खोके मशगूल हो जाता है।और बस उस इंसान के खयालो मे ही खोया रहता है।और जब इस तरह की दोस्ती की कल्पना भी न की गयी हो तो वापस कदम खीचना बहुत मुश्किल हो जाता है।

निशा- तो क्या उसमे मेरी भी गलती है समीर? 
समीर-गलत कोई भी नही होता।बस नज़रिये का फर्क पड़ता है। हो सकता है जो तुम्हारे नज़र मैं सही हो वो दूसरे की नज़र मैं गलत हो।सबका नज़रिया अलग होता है।और हमे उसका ध्यान रखना चाहिए।
निशा - शायद तुम सही कह रहे हो। थैंक्स ! समीर - चलो तुम्हें मुझ पर भरोसा तो हुआ। 

निशा-मेरी क्लास का समय हो गया है । चलो चलते हुए बात करते हैं। 
समीर-हा चलो।
थोड़ी दूर जाकर।
समीर- यह सामने जो इमारत है। मैं यही पढाई करता हूँ।यहा ही सारा रिसर्च का काम होता है।एक महीने तक मैं यही मिलूंगा।
निशा - यह तो बहुत सुंदर है। समीर मुझे अब जाना चाहिए। हम फिर कभी बात करते है।
समीर - जैसा तुम ठीक समझो। 

अगली सुबह निशा और शानू कॉलेज में मिलते है।

शानू - हेल्लो निशा 
निशा - हेल्लो शानू! मैं तुझसे ही बात करने वाली थी। 
शानू - मुझसे ? मतलब तू अब मुझसे नाराज़ नही है?
निशा - नाराज़ तो मैं पहले भी नही थी बस तेरी फ़िक्र थी इसलिए तुझसे बात करना चाहती थी। मैं जानती हूँ कि तुझे मेरी बातें बेतुकी लगेगी पर उन्हें सुनना और फिर उन्हें समझने की कोशिश करना।

तू सोच की शुभ जैसा लड़का एक दिन में कैसे बदल सकता है? कैसे तू उस पर आँख बंद कर इतना विश्वास कर सकती है? कैसे तू उसके लिए अपनी दोस्ती में दरार आने दे सकती है
क्योंकि मैं जानती हूँ कि कहीं ना कहीं तू भी सच जानती है। मैंने समीर से भी उसके रीसर्च सेंटर जाते हुए यही बात करी थी और उसने भी मुझे यही कहा कि मुझे तुझसे बात करनी चाहिए।
शानू - हाँ हो सकता है तू सही है। मैं इस बारे में सोचूंगी। पर यह समीर कौन है, मेंने तो इसके बारे मे कभी सुना ही नही है !
जारी...


No comments:

Post a Comment