Wednesday 19 December 2018

S12 E 19 - The one with Aarushi's birthday post"


उस खास दोस्त के लिए जिसने हमेशा साथ दिया है।  साथ निभाने के लिए शुक्रिया। 
इसको मुस्कुराहट के साथ पढ़े। 
उम्मीद है, तुम्हे यह पसंद आएगा!




हुआ था birthday तुम्हारा शायद यहां से शुरू!



चलो थोड़ा rewind krte है!
शायद यहां से शुरू हुआ था!

ऐसा तुम्हे पहली बार दिखाया था| 



पर आखिरी कुछ पलों में तो तुम calls  busy हो जाओगी । चलो मैं ही screenshot लेकर लगा देता हूं। 😄






तो ऐसे शुरू हुआ था birthday तुम्हारा। और शायद जब यह सब पढ़ रही होगी तो सबने मिलकर इसे खास बना दिया होगा! हो भी क्यों ना?
इतने सारे लोगों की खास जो है!
इतने सारे लोगों के पास जो हो ।

करते है शुरुआत इस दिन की!
खैर जब लिख रहा हूं तब तो रात है।
यह ना सोचना कि १९ दिसंबर की रात है यह।
आज का दिन तो मुझे भी याद नहीं।
पर birthday तुम्हारा ७ दिन बाद है।

पहले मैंने सोचा कर दुंगा text
फ़िर आया था ख्याल मेल करने का मुझे
पर मैने सोचा यह सब चले जाएंगे वक़्त के साथ बहुत पीछे
या पड़े रहेंगे किसी important या stared messages वाले डब्बे मै

फिर आया याद की मेरे ब्लॉग कब काम आएंगे।
जिस पल तक रहेगा तेरा यह दोस्त कुछ न कुछ अपनी कलम से बुनता।
उस पल तक यह "मेरे लफ्ज़" जीवित रहेंगे।
और यह पन्ना भी शायद उस दिन तक गूगल के पन्नों में रहेगा
जिस दिन तक
सब दूर हो जाएंगे
कॉलेज खत्म हो जाएंगे
मैं, तुम और सारे अपने दोस्त ।कहीं दूर कोनो मै बिछड़ जाएंगे।
याद करना तुम उस दिन यह पढ़कर कभी।
की कोई दोस्त ने लिखी थी कविता तुम्हारे जन्मदिन पर नई।






बड़े थे आगे तो यह वक़्त आया।
Instagram वाली पोस्ट का तुम्हे notification
Fir आया
Screenshot मांगने से लेकर surname की स्पेलिंग तक तुझे बहुत परेशान किया है।
पर सब पता होने के बाद भी कुछ ना पता होना।
इसमें ही तो मज़ा है।

होगी काफी गुफ्तगू
अब कविता पर आते है।
चलो तुम्हारे बारे मै ही
कुछ अब तुम्हे सुनाते है।

दोस्त हो बहुत खास तुम
बहुत जगह साथ दिया है
तेरी बातें ही कभी कभी काफी होती है
परेशानियों से बाहर आने के लिए
कुछ भी समझदारी से हल करने के लिए

कितना कुछ एक जैसे पसंद है 
मुझे और तुम्हे
शायद यह याद नहीं होगा तुम्हे
मोहब्बतें मैने भी देखी है १०० से ज़्यादा बार
बहुत पसंद है वो भी मुझे।

कॉफी लवर हो
कैप्शन बहुत शानदार लिखती हो
सेलेक्टिव तो हो तुम बहुत
बहुत चुनकर अल्फ़ाज़ लिखती हो।

दोस्त है कई
चिढ़ती भी काफियो से हो 😂
खेर जो पसंद नहीं थे शुरू मै तुम्हे
उनसे तो अब बात कर लेती हो

समय काफी कुछ बदल देता है
अपनी दोस्ती भी तो इसी का सिला है।

Misunderstandings  तो होती रहती है। इनपर किसका जोर है 
सुलझाकर उन्हें जो बढ़ जाए आगे
वही तो शायद सच्चा दोस्त है 


याद होगा शायद तुम्हे
याद होगा मगर थोड़ा थोड़ा
उसे कह लो शायरी तुम
या कह लो कविता

लिखी थी सभी खास मित्रो के लिए अपने
तुम हमेशा से उनमें से एक हो
पढ़कर देखो याद हो तो
आज भी हर लफ्ज़ सटीक है आप पर।

इसी दिन इसी रात की बात है
आखिरी गाना जो तेरी आवाज़ मै याद है
यारी , तेरी यारी ,चल माना इस बारी
सारी बेफिक्री तेरे आगे आकर हारी.......

गाना तो काफी गहरा है
शायद इतनी ना हो गहरी अपनी दोस्ती
पर लंबी तो काफी चलेगी
टिक गई है अब तक क्युकी यह
तो अब क्यों हो टूटेगी! 😄
गहरी है यह लाइन भी 
बस मै और तुम ही समझोगे
निभाने की कोशिश आप तो करते ही हो
निभाने की कोशिश पूरी हम भी करेंगे।


Techracers मै परचम लहराने की अब है बारी
उसके बाद mba कॉलेज मै एडमिशन लेकर आएगी सपनों की बारी
कर लोगी तुम जो चाहो
हमे आप पर बहुत भरोसा है
मंजिलों को पाकर आगे बढ़ ही जाओगी
मुश्किलों ने कब तुम्हे रोका है?
देखो, कोशिश करो 
हर मुकाम पाने की
रास्ते और लोग साथ आ ही जाते है।
कमाओ खाओ मोज मनाओ
यह पल वापस कभी नहीं आते है।
ऐसे खास पल वापस
कभी नहीं आते है।




यह मुस्कान को ऐसे ही बरकरार रखना
दोस्तो मै मुझे हमेशा बस तुम याद रखना 😀

A very Happy birthday 💕
Once again

Stay happy, Stay Blessed 

Saturday 21 January 2017

कागज़



उस कोरे कागज़ मे
जो झलक रहा है चेहरा
पूछो उसकी आँखों से जाकर
इतनी सच्चाई उसमे कैसे है ?

साफ उस पन्ने की देखो
जो चमक आँखों मे चुभती है
पूछो उस चेहरे से जाकर
इतने खूबसूरत हो आखिर तुम कैसे?

उस भरोसे से जैसे तुम
बातें हमसे करते हो
पूछो दिल से तुम अपने
इतना भरोसा आखिर करते हो कैसे?

प्यार हुआ चेहरे से ,आँखों से और
उस मुस्कुराहट से भी
पूछो जाकर तुम अपने मन से
इतना प्यार तुम करते हो कैसे?

काली उस स्याही पर
जो तुमपर हर वक़्त जचति है
इन तारीफों से खुश हो जाते है हम
पर इतनी झूठी तारीफ तुम करते कैसे हो?

शरमा तो शायद वो
कागज़ भी जाता होगा
जो पढ़ता है होगा अपनी
ऐसी गहरे प्यार की बातें

या शायद अफसोस मनाता होगा
कभी कभी मिलने का
ऐसे गहरे प्यार से
और पढ़ने का सिर्फ कभी कभी
ऐसे लफ्ज़ प्यार के

उम्मीद है बस यही तुमसे
की प्यार की गहराई को समझ सको तुम
जानो इस दिल को हमारे
और प्यार को बस गलती ना समझो तुम
समझो हमको, भरोसा करके तो देखो
उम्मीद है बस यही
प्यार बस मुझसे ही करलो तुम।।

Tuesday 3 January 2017

Random poems

1) Tu Jo pass hai ! 💓

Jab dard wo
dil mai ruka betha ho ,
Jab lafz ankahe,
 zubaan par thame ho,
Jab tujhe dekhu mai itni pass se
Ki dil ke gehre zakhm bhar jae!
Har us roz
 jis maksad se tera deedar hota hai
Jis khwahish se pyaar gehrai chuta hai
Uss har mohabbat ke pegam mai
Alfaazo ki kahaniya badalne ko betaab hu mai !!


2)अपना टूटा हुआ दिल याद आया होगा।
कितनी मुश्किल से मुझे तुमने भुलाया होगा
उस छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सज़ा क्यों दी मुझे।
लोग आज भी पूछते है की उन आंसुओ को केसे मैने सुखाया होगा।
शादी के दिन मैने अपनी जीवन संगनी को खो दिया
ये सच भी क्यों मेंने तुमसे छुपाया होगा
प्यार सच्चा ही था मुझे तुमसे
जाने क्यों तुम्हे मुझपे भरोसा ना आया होगा।
अनजाने जो मिले उस दिन हम दोनो
अपना टूटा हुआ दिल तो याद आया होगा।

3)वादा

वादे शायद कर सकता हूँ में कई
पर उन झूठे वादो से मेरा कोई नाता नही।
जिन वादो की तस्वीर भी धुंधली है
जिन वादो की तकदीर अनसुलझी है।
जिन वादो को निभाने के में काबिल नही
उन झूठे वादो से मेरा कोई नाता नही।

काश समझ जाए तु मुझे
काश मेरी हर कशिश में तु खो जाए।
काश मेरी हर बात को समझे तु
काश तु मेरी हो जाए।

आज तुझसे उम्मीदे है मुझे
आज तेरे प्यार का मरीज हू मैं।
आज तुझसे छुपाने की कोशिश
 भी मे न करूँगा।
आज कहता हूँ तुझे
हा। मुझे प्यार है तुझसे।


4)Logon KO khush Karne ki jadojahad mein
Mein khudko bhool gaya hoon
Aaj mein khudse puchta hu
Mein kyu aisa ho gaya hoon.

Zindagi mein pyaar ne dhoke diye do baar mujhe ,
Har pal mein Ro raha hoon mein,
Chehre mein khushi
Aur dil Mein maayusi he aaj
Mein kyu aisa ho gaya hoon.

Tere chehre ki muskurahat se
Dil mein khushi hoti thi mujhe
Par aaj mere dukh ke liye
Koi apna sa hai hi nahi
Jo samjhe mujhe
Samjhaun jise mein
Meri dil ki har baat
Aaj nahi hai koi aisi dost mere saath
Kitni doori ho gayi hai pyaar se meri aaj
Aisa hi kyu hua mere saath
Koi to bataye
Mein kyu aisa ho gaya hoon.

Khudko tarashne ki chahat mein
Mein hadd se paar nikal gaya hoon,
Bahar se to zinda dikh raha hoon
Andar hi andar ghut kar mar raha hoon
Aye mere dosto mein se koi
Iss marz ka illaaj karwa do
Mein apni zindagi se khush tha
Par aaj kal dukh mein jee raha hoon
Mujhe iss dukh se chutkara to dila do
Khone laga hoon dheere dheere mein khudko
Mujhe ab janne ki chahat hai
Ki kyu aisa ho gaya hoon.


5)
maa ki yaad mein bacho ne hazaro pal bitaye the
Shaam tk hi chidiyon ke bache chup ho pae the
Aa rahi thi maa danaa leke 
Usse dekh muskuraye the

Aasmaan satrangii tha
Rang biranga mausam tha
Sardi ke mausam mein
baarish ne daraya tha
Dhoop nhi nikli ,
din bhar andhera chaya tha
.
Darr se ladna hi unhe bs unki maa ne sikhaya tha
Ayaa ek dushman unka
Masoomo ko daraya usne
Darr ke udna chahte the bache
Pr maa ne itna sikhaya na tha
Jaate bhi kese ghar ko apne chod
Ghar to unka paraya na tha

maa to thi bahut door abhi
bacho ke pass koi sahara na tha

Ghar ko ujada..
Bacho ko maraa 
Bacho ne darr ko jhela tha
Us din ke baad se
Us Kaali raat se
Bacho n bas darna seekha tha

aaj tak seekha tha bas unhone
saare log hote hein bahut seedhe
saare log hote hein bahut ache
par mukhote ke piche ki duniya 
se bache wo aaj parichit hue hein

rone do unhe
kuch khoya he unhone
aaj bahut se jhut beparda hue hein.



दोस्ती !! पर क्यों ?

शायद !
खोना नही चाहता था तुझे मैं
इसलिए तुझसे प्यार नहीं कर पाया।
चाहत तो बन चुकी थी मेरी तू
पर तुझसे कभी इज़हार नहीं कर पाया ...

देखता हूँ रोज़ में!
जाने कितने रिश्तों को टूटते हुए
जो शायद सम्भल ना पाए
जो शायद पहुँच ना पाए उस मुकाम तक !

वो मुकाम...
जिसका सपना देखा होगा,
उनकी उम्मीदों भरी आँखों ने
आँखें..
जो देखना चाहती हो उस साथी को
सारी ज़िन्दगी
या शायद
लिखा ही नही गया हो
उनका खुशनूमा अंत
किसी फिल्म की कहानी की तरह।।

जाने कितने ही प्यार करने वाले
बिखर जाते है...
उन पुराने फूलों की तरह
जो समय रहते खिल ना पाए
या शायद तोड़ा नही किसी ने
उन खूबसूरत फूलों को
भगवान को चढाने के लिए..
या अपनी प्रेमिका को
मनाने के लिए..

या शायद
नही दिया उस फूल को किसी ने
अपनी माँ का आँचल महकाने के लिए।
या घर की शोभा बढ़ाने के लिए

शायद यही कारण है कि
समझा रहा हूँ तुम्हें मैं
चाहता नही हूँ तुमसे बिछड़ना कभी!
चाहता नही हूँ रिश्ते का बिखरना कभी
मरने तक साथ निभाने की कसमें तो शायद
हर प्यार करने वाला खाता है।।

पर तुम भी जानते हो कि अंत रिश्ते का
कुछ सालों में ही हो जाता है।
मिलेगा क्या ऐसे रिश्तों से?
जिसका अंत आसुओं से लिखा हो
क्योंकि गहराई अगर दोस्ती में है
तो कोई दूरी उस रिश्ते को
खत्म कर नही पाएगी

और सिर्फ यही दोस्ती आपकी
आपके माँ पापा के बाद
सबसे ज़्यादा फ़र्ज़ निभाएगी.........

Yash Kulshrestha



Monday 2 January 2017

सम्मान की रक्षा !! - a story on honour killing

राधा बेटा! आँटी के घर जाकर अस्तर मिलाने मे मदद तो करदे उनकी। यह शब्द तो मानो राधा के लिए अमृत वाणी थी। के घर जाना मतलब उसे बाहर जाने का मौका मिलेगा। उसकी प्रिय रुचि आँटी उसे बहुत सारे स्वादिष्ट व्यंजन खिलाएगी। और वो अपनी सारी बातें उन्हें ही तो बताने के लिए छुपा के रखती थी। वो अपनी माँ से ज़्यादा आँटी को पसन्द करती थी।अपने कुछ जोड़ी कपड़ों मे से एक राधा पहन लेती है। और वो निकल पड़ी आँटी के घर की और।आँटी का घर तो वैसे सिर्फ तीन गलियों के बाद ही था। पर उसको अपने घर की हज़ारों बेड़ियां, समाज के अनेक बंधन और पापा के उसकी शादी को लेकर विचारों से थोड़ी राहत मिलती थी।
राधा , जो 16 साल की है , रंग गोरा और दिखने मे बहुत खूबसूरत , घर मे एकलौती लड़की थी। उसका एक बड़ा भाई भी था।उसका परिवार कट्टर राजपूत समाज का हिस्सा है। जहां की लड़कियों को किसी दूसरी जात के लड़के से शादी करना तो दूर। घरवालों की इजाज़त के बिना प्यार करना भी संगीन जुर्म माना जाता है। ऐसा जुर्म जिसकी सज़ा भी उसके ही घर वाले तय करते है। और कानून तो जैसे उनके लिए कुछ था ही नही। राधा हस्ते, मुस्कुराते हुए आँटी के पास पहुची। आँटी तो जैसे राधा का ही इंतेज़ार कर रही थी। उनकी कोई बेटी नही थी | बस एक बेटा था जो इंदौर मे पढ़ता था। आँटी ने आते ही जूस, फल और व्यंजन परोसे। वो उसे बहुत प्यार करती थी।
आँटी- कैसा रहा दिन बेटा?राधा- कुछ नया नही हुआ। पापा ने कपड़ो के लिए फिर डांटा । मेरी सलवार थोड़ा भीग गयी था। उन्हें गुस्सा आ गया। और मेरे मोबाइल के लिए जो माँ ने पैसे जमा किए थे उसमे से भैया ने आधे अपने चश्मे के लिए ले लिए। अब एक साल और रुकना पड़ेगा मुझे।आँटी - राधा! ऐसे मायूस नही होते। सब ठीक हो जाएगा। तुझे बोला तो है मैं दिला देती हूँ पसंद का मोबाइल । राधा- नही आँटी। मेरी माँ दिला देगी मुझे। वो मेरे लिए ही तो कमाती है।आँटी- मैं भी तेरी माँ समान ही हूँ राधा। राधा(नम आखों से)- आप नही होती तो मेरा क्या होता आँटी?आँटी- देश मे हालात बहुत बदल गए है बेटा। तू चिंता मत कर। यहां भी सब बदल जाएगा। तु अच्छे से खा ले।कितनी कमज़ोर होती जा रही है!राधा- खा तो रही हूँ आँटी।सब बहुत अच्छा बना हैं ।खीर तो बहुत अच्छी बनी है। आँटी- जबसे यश बाहर गया है।बस तेरे लिए ही खीर बनती है। बूरी भी होगी तो भी नही बोलती तु। राधा- सच्ची अच्छी है खीर माँ। (रोने लगती है)
राधा के पापा शराब के आदी थे। वह अपनी कमाई दारु पर उड़ा देते थे। और उसका भाई जितना कमाता था उससे कई गुना ज़्यादा उसके खर्चे थे। जिसका पूरा बोझ राधा के खर्चो पर आता था।और उसे ही हर खुशी मे कुर्बानी देनी पड़ती थी। बचपन से ही लड़कियो को पराए घर की अमानत के तौर पर बड़ा किया जाता है।जब वो शादी का अर्थ नही समझती उससे पहले उसे ससुराल जाने के नाम से डरा दिया जाता है। और जब वो बड़ी हो जाती है, फिर तो उसे पराया धन, दूसरे की घर की लक्ष्मी आदि कहकर ही बुलाया जाता हैं।
राधा घर पहुँच जाती हैं ।वहां उसकी माँ उसी की राह देख रही थी। पापा से पहले उसका घर मे रहना भी ज़रूरी होता था। अन्यथा उसके पापा बेटी पर हाथ उठाने से भी नही कतराते थे।
राधा के पिता एक शराब की दुकान पर काम करते थे। पर उनकी ज़्यादातर कमाई पीने मे ही निकल जाती थी। और फिर घर मे लड़ाई झगड़े आम बात थी। उसकी माँ सिलाई बुनाई से घर के बाकी खर्च चलाती थी। और राधा कुछ छोटी लड़कियों को घर मे ही पढाके अपनी माँ की सहायता करती थी।सब ऐसे ही सालों से चला आ रहा था। भोपाल जैसे शहर मे रहकर भी कट्टर रिवाज़ और संस्कृतियों को उनपर थोपा जाता था।
बिना कारण घर की चौखट पार करना या बेवजह हँसना , मुस्कुराना या घर के मर्दों के खिलाफ लफ्ज़ निकालना, सब पाप थे।
कुछ दिनों बाद राधा के पिता ने दुकान मे ही शराब पीकर तमाशा कर दिया। ग्राहकों और मालिक को चोंटे आई। इन सब के बीच कही बवंडर की आशंकाएं दिखने लगी थी। मार पिटाई होने से बात बढ़ गयी और उनको दुकान से निकाल दिया गया।यह नौकरी उनके 4 लोगो के परिवारिक कमाई का बड़ा स्त्रोत थीं।
राधा का घर -पिता बहुत गुस्से मे अंदर आते है।और आते ही मदिरा पान के लिए बेठ जाते है। ऐसी हालत मे वो अक्सर आकर पीने के लिए बैठ जाते थे।पर आज पहली बार उनके चेहरे पर चोंट के निशान और खरोचें भी थी। राधा की माँ बहुत सहम गयी थी।और राधा को लेकर अंदर चली गयी। ऐसी हालत मे उनसे सवाल जवाब करना अपनी मौत को बुलावा देने के बराबर था।शराब का सेवन करके पिता सो गए। और ऐसी हालत देखकर राधा और उसकी माँ अपने आँसुं नही रोक पाए।
(रात के दो बजे)
राधा पानी पीने उठी थी। उसने अपने पिता के कमरे मे झाँका। वो हल्की नींद मे सो रहे थे। बार-बार पलट रहे थे। कोई चिंता उन्हें खा रही थी। राधा को उन्हें ऐसे देखकर डर लग रहा था। पर वो पानी पीकर सो गयी। उसने पापा से दूरी को ही सही माना।
अगली शाम तक सबको दुकान वाली घटना के बारे मे पता चल गया था। तभी राधा का एक पुराना दोस्त भी उससे मिलने आया। पापा के डर से बाहर ही खड़े होकर बात करना उसने ठीक समझा। पापा ने आवाज़ लगाई। पर राधा भी अपने दोस्त से बहुत सालों बाद मिल पाई थी।वापस अंदर जाना उसे ठीक नही लगा। पापा नशे मे होश खो चुके थे। और वो राधा से खाना बनवाना चाहते थे। 3 आवाज़ बाद भी राधा के अंदर ना आने से उन्होंने आपा खो दिया।और बाहर आकर चिल्लाने लगे। मामला बढ़ता देख राधा जल्दी से अंदर आ गयी।और रसोई मे खाना बनाने चली गयी।पर पापा का गुस्सा शांत नही हुआ था और लड़के के साथ देखकर वो अपना आपा खो चुके थे।पापा- ऐसे ही मुह काला करेगी तु अपना। सारे मोहल्ले के सामने लड़के से बात कर रही थी।कोन था वो आशिक़?राधा- बचपन मे साथ पड़ता था पापापापा- तो बचपन की दोस्ती को जवानी मे क्यों चला रही है! मै नही देखता तो जाने कहाँ चले जाती उसके साथ!राधा- नही पापा! ऐसा कुछ नही है।राधा के जवाब के साथ ही पापा का हाथ उठ जाता है और राधा को बहुत ज़ोर से चांटा पड़ता है। नशे के असर से पापा को कुछ आभास नही रहता और वो गेस पाईप से उसका गला दबा देते है। राधा छुटने की बहुत कोशिश करती है।पर उसका दम घुटने लगता है।तभी माँ वापस आ जाती है और राधा को छुड़ाने की कोशिश करती है।पर तब तक वो बेहोश हो चुकी थी और सांसें फूल रही थी। माँ पहले पिता को होश मे लाने की कोशिश करती है और फिर राधा की साँस का जायज़ा लेती है।अगर अस्पताल ले जाएंगे तो गले के निशान से डाक्टर को शक हो जाता की मारने की कोशिश की गयी थी। पिता को अपनी बेटी की कुर्बानी मंज़ूर थी पर अपनी इज़्ज़त पर आंच बिल्कुल नही।
अंततः राधा की हत्या की कोशिश को आत्महत्या दर्शाने की कोशिश की शुरुआत होती है। उसके दुप्पटे से फांसी का फंदा तैयार किया जाता है। और उसे पंखे पर लटका दिया जाता है। उसके बाद शोर मचाकर पड़ोसियों को बुलाया जाता है।खबर पहुचते ही रुचि आँटी भी 5 मिनट मे वहा पहुच जाती है ।और उसे नीचे उतारने मै मदद करती है। राधा की साँसे चल रही है। वो कुछ बोलने की कोशिश करती है।पर शायद गले की नस उसे बोलने मै सहायता नही दे पा रही थी। पड़ोसी की कार से ले जाते वक़्त माँ - बाप किसी और को उससे बात नही करने देते।और अस्पताल पहुचने से पहले हमारी राधा की मौत हो जाती है।
उसकी गर्दन पर अलग अलग निशान देखे जा सकते थे। पर पापा जांच के लिए नही मानते और अगली ही सुबह पहली किरण के साथ बिना जांच के उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। माँ भी अपनी बेटी को अपने पति के लिए कुर्बान कर चुकी थी।और एक राधा हमेशा के लिए अस्त हो गयी। राजपूतों मे मर्द की इज़्ज़त के लिए औरत, बेटी और माँ को भी अनेकों कुर्बानियां देनी पड़ जाती है।और अनेकों राधा किसी न किसी कारण से हर साल कुर्बान हो जाती है।
एक तरफ कृष्ण जी की राधा थी जिसको कान्हा के हर रूप के साथ पूजा जाता है। जिन्की तस्वीर उनके घर मे आज भी हमारी राधा के साथ लगी है। और एक तरफ इतनी छोटी सोच और इंसाफ के साथ इतनी ज़्यादा नाइंसाफी की कानून, इंसानियत जेसी चीज़ों के कुछ मायने ही ना रह जाएं।
आँखें खुली है ,सब आपके सामने हो रहा है। कोई अनदेखा कर रहा है तो कोई देखकर भी कुछ नही कर पा रहा है। आपको सोचना है की हम देश को किस दिशा मे ले जाएंगे।और लड़कियों को आगे बढ़ाना ही है तो उनके अपने घरो से आज़ादी दिलवाइए।फिर कहीं जाकर समाज के बारे मे सोचा जाएगा।नही तो लाखों राधा ऐसे ही झूठे सम्मान बचाने के लिए बलिदान कर दि जाएंगी।

Sunday 11 December 2016

Episode-6

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निशा- क्या मैने तुम्हे समीर के बारे मे नहीं बताया?
शानू- पिछले एक हफ्ते से तुमने मुझसे ठीक से बात ही कहाँ की है।
निशा- हां। सही है
शायद हम दोनो ही एक दूसरे को कुछ बताना चाह रहे थे पर हमारी दोस्ती को तो जेसे किसी की नज़र लग गयी थी।
शांनु- हाँ!सच में। 
छोड़ो यह सब तुम और बताओ कि समीर कौन है?
निशा- समीर अपने ही कॉलेज में रिसर्च कोर्स के लिए आया है। उसे पशु पक्षियों से बहुत प्यार है। वो सादगी और समझदारी का प्रतीक है।और वो उन कुछ लोगो में शामिल हो चुका है जिनसे मुझे बातें करना पसंद है।
शानू- एक मिनट!
समीर सच मे भी है या कल्पना है ? यह सारी आदतें तो समर की है।क्या तु समर को ही समीर बोलने लगी है आजकल?
निशा- नहीं बाबा। समीर से मैं तालाब के पास मिली थी।फिर अगले दिन पुस्तकालय में और फिर हमने साथ में कॉफी भी पी थी।
शानू- और रिसर्च सेंटर कहाँ है अपने कॉलेज में? मेंने तो कभी नहीं देखा!
निशा- वो पुस्तकालय के पीछे है।तु कभी किताबे पड़ने जाएगी तब तो दिखेगा।
और समर कहानी का पात्र है। असल ज़िन्दगी मे वैसा कोई केसे हो सकता है?उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती।
शानू- मुझे समीर से कब मिलवा रही है? जल्दी बता
निशा-इतनी तपती हुई धूप में समीर तालाब के पास बत्तखों को निहार रहा होगा।चल वही।

निशा अपनी दोस्त को वापस पाकर खुश थी।समीर का उसकी ज़िन्दगी में एकाएक महत्व बड़ गया था इसलिए उसको शानु से मिलवाने में उसे बहुत खुशी हो रही थी।वो उसको उसी तालाब के पास ले गयी जहां वो पहली बार मिले थे।अब बस यह देखना था की समीर वहा मिलता है या नहीं! और क्या समीर है भी?

शानु को पहली नज़र में वहा कोई नहीं दिखता है। निशा उसे थोड़ी आगे झाड़ियो के पास ले जाती है। वहां समीर चुपचाप ,मन्द मन्द मुस्कुराते हुए बत्तखों को निहार रहा है।वो रुक रुक कर बत्तखों से बात करने की भी कोशिश कर रहा है

निशा- क्या गुफ्तगू चल रही है साहब!
समीर- हेल्लो निशा। कुछ नहीं बस इनके खेल में अपने बचपन को याद कर रहा हूँ। छोटे बच्चे कितने प्यारे होते है ना! ना ही किसी से बैर ,न ईर्ष्या और ना ही नफरत का कोई भाव।
निशा- हां। सही है।
समीर- तुम कब आई और यह शानु है क्या?
निशा- हां समीर।यही है मेरी सबसे प्यारी सहेली शानु।
समीर- हाय शानु !
शानु- हेल्लो समीर। 
निशा ने जेसा बताया था तुम्हारे बारे में तुम वेसे ही हो।मुझे तो इसकी बातों पर यकीन ही नही हो रहा था कि तुम जेसे लड़के होते है आज कल।
समीर- सच्चाई तो यह है शानु कि हर लड़का वैसा नही होता जैसा दिखता है।कभी ना कभी वो ऐसे हालातो में ढ़ल जाता है जैसा उसके दोस्त, उसकी सहेलियाँ और उसका परिवार उससे उम्मीद रखते है।इंसानियत, प्रेम ,अपनापन भी सबमे ही होता है।पर बहुत लोग उपहास के डर से यह सब अपने दिल में ही दबा लेते है।
शानु- और तुम्हारे वजह से ही हम दोनो की दोस्ती बनी हुई है। थैंक्यू 
समीर-उसकी कोई ज़रूरत नही है।
और बताओ शुभ कैसा है?
शानु- उसमे कोई शक नही की तुमने उसके बारे में सुना होगा। उससे रोज़ मिलना नही होता। बस वो दोस्त ही है।जितनी दूरी ज़रूरी है उतनी दूर ही रहूंगी।
निशा- कोई और भी बैठा है यहां।भूल ही गए मुझे तो तुम सब।
शानु- अच्छा बाबा। चक इट ।मैं जा रही घर
मिलते है फिर। बाय।
समीर,निशा- बाय शानु।

निशा- मुझे समझ नही आ रहा की तुम्हे कैसे धन्यवाद दूँ।तुम्हारी वजह से मेरी और निशा की दोस्ती सलामत है।
समीर- नही यार|मुझे धन्यवाद बोलकर शर्मिंदा मत करो। मैने वही किया जो मैं खुद करता। अब कम से कम बार बार ख्यालो में नही खो जाओगी तुम।
निशा(हंसते हुए) - सही कहा तुमने।वैसे तुम्हारे साथ समय का पता ही नही चलता है। मुझे भी जाना है।चलती हुँ मैं।
समीर- बाय।

ऐसे ही निशा और समीर मिलते रहे ।कभी कॉफी कभी घूमना-फिरना और बातचीत के सहारे उनकी दोस्ती का कारवां चलता रहा। 

एक शाम ऐसे ही ठण्डी हवाओं के बीच ,तालाब किनारे दोनो पक्षियों के खेल को निहार रहे थे।और निशा के हाथ में थी 'समर का सफर'।
समीर-तुम यही किताब क्यों पड़ती रहती हो?माना कि यह बहुत अच्छी है पर और भी किताबें है पड़ने के लिए।
निशा- इस किताब में समर है। और समर मेरी ज़िन्दगी में इकलौता लड़का था। उसकी सादगी, सरलता और सच्चाई,उसकी पसन्द ,सबसे मुझे प्यार है।
समीर- क्या तुम्हे असली ज़िन्दगी में प्यार नही हो सकता?
निशा- झूठ की बुनियाद पर बुनी हुई इस दुनिया में सच्चा प्यार मिलना बहुत मुश्किल है।
समीर- प्यार ही तो इस दुनिया का आधार है।प्यार के बिना यह दुनिया में आक्रोश और मारपीट बहुत बड़ जाएगी।प्यार ही दुनिया का आधार है।
निशा- वो कैसे?
समीर- बच्चे के रोने से माँ की चिंता , एक-एक दाना लाकर घोसला बुनती चिडिया, फरेब की दुनिया में बिना मतलब लड़कियों से दोस्ती करते कुछ लड़के, और गलत लोगो से दूर रहने की अंजानो को सलाह देना। यही निस्वार्थ भावना इस दुनिया का आधार है। माँ बाप कभी नही जानते की उनका बच्चा आगे उनको रखेगा या नही। पर फिर भी उसको पालने के लिए कोई कमी नही छोड़ते ।यही प्यार है निशा। 
निशा- हां समीर।पर संबंध बनाना प्यार नही है क्या?
समीर- बस आई लव यु बोलकर एक दूसरे से संबंध की शुरुआत को अगर कोई प्यार मानता है तो यह सिर्फ धोका ही दे सकता है।
प्यार दोनो तरफ से और निस्वार्थ भाव से ही हो सकता है। जब दूसरो की खुशी आपकी खुशी से बढ़कर है और जब बातों की गहराइयो को आप समझने लगते है तब प्यार का असली अर्थ आप समझ पाते है।बस इन सब को पहचानने और अपनाने की ज़रूरत है।

निशा- इन सब के बारे में मुझे सोचना पड़ेगा।
समीर - ज़रूर सोचना ।मैं चलता हूँ।

निशा उसकी बातों में खो जाती है।उसे उन बातों की सच्चाई मेहसुस हो रही थी।उसने प्यार के बारे में कभी नही सोचा था।अब उसे अगले दिन समीर से मिलने का इंतेज़ार था। उसे कुछ कहना था उससे।

अगली सुबह।
समीर -हेल्लो निशा।
निशा- हेल्लो समीर। कही जा रहे हो?
समीर- अरे हां।मैं तुम्हे बताना भूल गया की मेरा एक महीने का ही कोर्स था।अब मेरे जाने का समय हो गया। मैं आज ही निकल रहा हूँ।अच्छा हुआ तुम मुझे यहां मिल गयी। पता नही फिर कब मिलना होता।
निशा- वापस कब आओगे तुम?
समीर -अभी कुछ कह नही सकता। मौसम के हिसाब से अलग अलग जगह विभिन्न पक्षियों को देखने जाता हु मैं। क्या पता कब कहा पहुँच जाऊं!
निशा- तुम पहले बता देते तो अच्छा रहता।
समीर- मेरा प्रोजेक्ट जल्दी खत्म हो गया।इसलिए जाना पड़ेगा। मेरी ट्रेन का समय हो गया हैं। मैं चलता हूँ।
अपना ख्याल रखना।

निशा- बाय!....

इसके आगे निशा कुछ बोल नही पाई या शायद कुछ बोलना नही चाहती थी।वह उसे जाते हुए देख रही थी। पिछले एक महीने मे समीर उसकी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन गया था।वो शायद कुछ कहना चाहती थी, कुछ समय और बिताना चाहती थी पर उसे रोका नही।
हमारी निशा को प्यार नही हो सकता था।वो उसके लिए शायद बनी ही नही थी। पर उसको प्यार और विश्वास की नई परिभाषा मिली थी।
समीर ने अपनो और परायो मे अंतर सीखा दिया था। कुछ लोगो को खुश रहने के लिए साथ रहने की ज़रूरत नही है।यादें और आदतों के सहारे भी वो ज़िन्दगी में बने रहते है।

जाते-जाते वो हमारी निशा को बदल गया था।हमारी बेपरवाह निशा को लोगो की परवाह होने लगी थी।और उसकी भूरी आखों ने दुनिया के बहुत सारे नए रंग देख लिए थे।उसकी आंखो में किसी की शख्सियत उतर गयी थी। वो तो दूर चले गया था पर उसकी बातें निशा के दिलो-दिमाग में हमेशा -हमेशा के लिए घर कर गयी थी।अगर बेपरवाह होने से लोगो से धोके नही मिलते तो दिल के करीब भी तो कोई नही आ पाता।
किसी ने सच ही कहा है।
It's always better to be loved or cared rather than never ever caring for anyone in your life.
अलविदा

Episode 5


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निशा - मदद ? तुम मेरी मदद कैसे कर सकते हो ?
समीर - तुम एक बार भरोसा तो कर के देखो शायद सिर्फ़ मैं ही तुम्हारी मदद कर सकता हूँ!तुम एक बार मुझे बता के तो देखो कि आख़िर ऐसी कौनसी विचारों कि लहरें है जिसमे तुम बह जाती हो ? आख़िर विचारों की कौनसी नदी है जिसमें तुम डूब जाती हो ?ऐसा भी क्या हो गया है तुम्हारे साथ कि तुम खयालों मैं ओझल होकर खोयी-खोयी रहने लगी हो?

निशा - (हँसते हुए) अच्छा !इन सवालों का अगर तुम जवाब चाहते हो तो बताओ मुझे की 
हम कैसे किसी अनजान पर इतना विश्वास करने लगते है की अपनों को ही भूल जाते हैं?
और क्यों हमे बस वही पहलू दिखता है जो हम देखना चाहते हैं। और वो नहीं जो सच्चाई होती है? बातों की गहराइयों को हम क्यों नही समझना चाहते?
समीर - मुझे इन सब सवालों का जवाब देना तो चाहिए।पर तुम यह तो बताओ की तुम यह सब पूछ क्यों रही हो?

निशा - तुम ये समझ लो की हो सकता है यह बात मेरी अपनी ही ज़िंदगी से जुड़ी हो ,मेरी ही कोई दोस्त मुझसे ज़्यादा किसी और के झूठ पर विश्वास कर रही हो ।
समीर -अगर किसी को ऐसा लगता है की उसका दोस्त मुसीबत में है और दोस्त यह नही जानता की वह ग़लत है ।तो तुम्हारा फ़र्ज़ है उसे समझाना की उसने जो राह चुनी है वह गलत है और उस राह की कोई मन्ज़िल ही नही है।वो डगर उसे ऐसे मोड़ पर ले जाएगी जहां से वापस आना मुश्किल हो जाएगा

निशा - सलाह देना हमेशा आसान होता है!ऐसे केसे मैं खो दु अपने दोस्त को? हो सकता है वो मुझसे दोस्ती ही ख़त्म कर दे। तो इस से अच्छा तो यह है ना की मैं उसको उसकी ख़ुशी में ख़ुश रहने दूँ।

समीर - ज़रूर !तुम ऐसा कर सकती हो। पर सोचो क्या यह सही होगा की तुम सब कुछ जानते हुए भी अपने दोस्त को मुसीबत में छोड़ दो। तुम उसकी दोस्त हो तो तुम कैसे भी उसे समझाओ और वो भी तो तुम्हारी ही दोस्त है कब तक वो तुम्हारी बात नही सुनेगी।कभी न कभी तो वो होना ही है ना जिसका तुम्हे डर है। और सच बात तो यह है कि पूरी गलती तुम्हारी दोस्त की भी नही है। जब प्यार होता है तो इंसान कुछ नही सोचता।कोई रिश्ता नही देखता।बस प्यार मैं खोके मशगूल हो जाता है।और बस उस इंसान के खयालो मे ही खोया रहता है।और जब इस तरह की दोस्ती की कल्पना भी न की गयी हो तो वापस कदम खीचना बहुत मुश्किल हो जाता है।

निशा- तो क्या उसमे मेरी भी गलती है समीर? 
समीर-गलत कोई भी नही होता।बस नज़रिये का फर्क पड़ता है। हो सकता है जो तुम्हारे नज़र मैं सही हो वो दूसरे की नज़र मैं गलत हो।सबका नज़रिया अलग होता है।और हमे उसका ध्यान रखना चाहिए।
निशा - शायद तुम सही कह रहे हो। थैंक्स ! समीर - चलो तुम्हें मुझ पर भरोसा तो हुआ। 

निशा-मेरी क्लास का समय हो गया है । चलो चलते हुए बात करते हैं। 
समीर-हा चलो।
थोड़ी दूर जाकर।
समीर- यह सामने जो इमारत है। मैं यही पढाई करता हूँ।यहा ही सारा रिसर्च का काम होता है।एक महीने तक मैं यही मिलूंगा।
निशा - यह तो बहुत सुंदर है। समीर मुझे अब जाना चाहिए। हम फिर कभी बात करते है।
समीर - जैसा तुम ठीक समझो। 

अगली सुबह निशा और शानू कॉलेज में मिलते है।

शानू - हेल्लो निशा 
निशा - हेल्लो शानू! मैं तुझसे ही बात करने वाली थी। 
शानू - मुझसे ? मतलब तू अब मुझसे नाराज़ नही है?
निशा - नाराज़ तो मैं पहले भी नही थी बस तेरी फ़िक्र थी इसलिए तुझसे बात करना चाहती थी। मैं जानती हूँ कि तुझे मेरी बातें बेतुकी लगेगी पर उन्हें सुनना और फिर उन्हें समझने की कोशिश करना।

तू सोच की शुभ जैसा लड़का एक दिन में कैसे बदल सकता है? कैसे तू उस पर आँख बंद कर इतना विश्वास कर सकती है? कैसे तू उसके लिए अपनी दोस्ती में दरार आने दे सकती है
क्योंकि मैं जानती हूँ कि कहीं ना कहीं तू भी सच जानती है। मैंने समीर से भी उसके रीसर्च सेंटर जाते हुए यही बात करी थी और उसने भी मुझे यही कहा कि मुझे तुझसे बात करनी चाहिए।
शानू - हाँ हो सकता है तू सही है। मैं इस बारे में सोचूंगी। पर यह समीर कौन है, मेंने तो इसके बारे मे कभी सुना ही नही है !
जारी...


S12 E 19 - The one with Aarushi's birthday post"

उस खास दोस्त के लिए जिसने हमेशा साथ दिया है।  साथ निभाने के लिए शुक्रिया।  इसको मुस्कुराहट के साथ पढ़े।  उम्मीद है, तुम्हे यह पसंद...