Sunday 11 December 2016

Episode-6

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निशा- क्या मैने तुम्हे समीर के बारे मे नहीं बताया?
शानू- पिछले एक हफ्ते से तुमने मुझसे ठीक से बात ही कहाँ की है।
निशा- हां। सही है
शायद हम दोनो ही एक दूसरे को कुछ बताना चाह रहे थे पर हमारी दोस्ती को तो जेसे किसी की नज़र लग गयी थी।
शांनु- हाँ!सच में। 
छोड़ो यह सब तुम और बताओ कि समीर कौन है?
निशा- समीर अपने ही कॉलेज में रिसर्च कोर्स के लिए आया है। उसे पशु पक्षियों से बहुत प्यार है। वो सादगी और समझदारी का प्रतीक है।और वो उन कुछ लोगो में शामिल हो चुका है जिनसे मुझे बातें करना पसंद है।
शानू- एक मिनट!
समीर सच मे भी है या कल्पना है ? यह सारी आदतें तो समर की है।क्या तु समर को ही समीर बोलने लगी है आजकल?
निशा- नहीं बाबा। समीर से मैं तालाब के पास मिली थी।फिर अगले दिन पुस्तकालय में और फिर हमने साथ में कॉफी भी पी थी।
शानू- और रिसर्च सेंटर कहाँ है अपने कॉलेज में? मेंने तो कभी नहीं देखा!
निशा- वो पुस्तकालय के पीछे है।तु कभी किताबे पड़ने जाएगी तब तो दिखेगा।
और समर कहानी का पात्र है। असल ज़िन्दगी मे वैसा कोई केसे हो सकता है?उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती।
शानू- मुझे समीर से कब मिलवा रही है? जल्दी बता
निशा-इतनी तपती हुई धूप में समीर तालाब के पास बत्तखों को निहार रहा होगा।चल वही।

निशा अपनी दोस्त को वापस पाकर खुश थी।समीर का उसकी ज़िन्दगी में एकाएक महत्व बड़ गया था इसलिए उसको शानु से मिलवाने में उसे बहुत खुशी हो रही थी।वो उसको उसी तालाब के पास ले गयी जहां वो पहली बार मिले थे।अब बस यह देखना था की समीर वहा मिलता है या नहीं! और क्या समीर है भी?

शानु को पहली नज़र में वहा कोई नहीं दिखता है। निशा उसे थोड़ी आगे झाड़ियो के पास ले जाती है। वहां समीर चुपचाप ,मन्द मन्द मुस्कुराते हुए बत्तखों को निहार रहा है।वो रुक रुक कर बत्तखों से बात करने की भी कोशिश कर रहा है

निशा- क्या गुफ्तगू चल रही है साहब!
समीर- हेल्लो निशा। कुछ नहीं बस इनके खेल में अपने बचपन को याद कर रहा हूँ। छोटे बच्चे कितने प्यारे होते है ना! ना ही किसी से बैर ,न ईर्ष्या और ना ही नफरत का कोई भाव।
निशा- हां। सही है।
समीर- तुम कब आई और यह शानु है क्या?
निशा- हां समीर।यही है मेरी सबसे प्यारी सहेली शानु।
समीर- हाय शानु !
शानु- हेल्लो समीर। 
निशा ने जेसा बताया था तुम्हारे बारे में तुम वेसे ही हो।मुझे तो इसकी बातों पर यकीन ही नही हो रहा था कि तुम जेसे लड़के होते है आज कल।
समीर- सच्चाई तो यह है शानु कि हर लड़का वैसा नही होता जैसा दिखता है।कभी ना कभी वो ऐसे हालातो में ढ़ल जाता है जैसा उसके दोस्त, उसकी सहेलियाँ और उसका परिवार उससे उम्मीद रखते है।इंसानियत, प्रेम ,अपनापन भी सबमे ही होता है।पर बहुत लोग उपहास के डर से यह सब अपने दिल में ही दबा लेते है।
शानु- और तुम्हारे वजह से ही हम दोनो की दोस्ती बनी हुई है। थैंक्यू 
समीर-उसकी कोई ज़रूरत नही है।
और बताओ शुभ कैसा है?
शानु- उसमे कोई शक नही की तुमने उसके बारे में सुना होगा। उससे रोज़ मिलना नही होता। बस वो दोस्त ही है।जितनी दूरी ज़रूरी है उतनी दूर ही रहूंगी।
निशा- कोई और भी बैठा है यहां।भूल ही गए मुझे तो तुम सब।
शानु- अच्छा बाबा। चक इट ।मैं जा रही घर
मिलते है फिर। बाय।
समीर,निशा- बाय शानु।

निशा- मुझे समझ नही आ रहा की तुम्हे कैसे धन्यवाद दूँ।तुम्हारी वजह से मेरी और निशा की दोस्ती सलामत है।
समीर- नही यार|मुझे धन्यवाद बोलकर शर्मिंदा मत करो। मैने वही किया जो मैं खुद करता। अब कम से कम बार बार ख्यालो में नही खो जाओगी तुम।
निशा(हंसते हुए) - सही कहा तुमने।वैसे तुम्हारे साथ समय का पता ही नही चलता है। मुझे भी जाना है।चलती हुँ मैं।
समीर- बाय।

ऐसे ही निशा और समीर मिलते रहे ।कभी कॉफी कभी घूमना-फिरना और बातचीत के सहारे उनकी दोस्ती का कारवां चलता रहा। 

एक शाम ऐसे ही ठण्डी हवाओं के बीच ,तालाब किनारे दोनो पक्षियों के खेल को निहार रहे थे।और निशा के हाथ में थी 'समर का सफर'।
समीर-तुम यही किताब क्यों पड़ती रहती हो?माना कि यह बहुत अच्छी है पर और भी किताबें है पड़ने के लिए।
निशा- इस किताब में समर है। और समर मेरी ज़िन्दगी में इकलौता लड़का था। उसकी सादगी, सरलता और सच्चाई,उसकी पसन्द ,सबसे मुझे प्यार है।
समीर- क्या तुम्हे असली ज़िन्दगी में प्यार नही हो सकता?
निशा- झूठ की बुनियाद पर बुनी हुई इस दुनिया में सच्चा प्यार मिलना बहुत मुश्किल है।
समीर- प्यार ही तो इस दुनिया का आधार है।प्यार के बिना यह दुनिया में आक्रोश और मारपीट बहुत बड़ जाएगी।प्यार ही दुनिया का आधार है।
निशा- वो कैसे?
समीर- बच्चे के रोने से माँ की चिंता , एक-एक दाना लाकर घोसला बुनती चिडिया, फरेब की दुनिया में बिना मतलब लड़कियों से दोस्ती करते कुछ लड़के, और गलत लोगो से दूर रहने की अंजानो को सलाह देना। यही निस्वार्थ भावना इस दुनिया का आधार है। माँ बाप कभी नही जानते की उनका बच्चा आगे उनको रखेगा या नही। पर फिर भी उसको पालने के लिए कोई कमी नही छोड़ते ।यही प्यार है निशा। 
निशा- हां समीर।पर संबंध बनाना प्यार नही है क्या?
समीर- बस आई लव यु बोलकर एक दूसरे से संबंध की शुरुआत को अगर कोई प्यार मानता है तो यह सिर्फ धोका ही दे सकता है।
प्यार दोनो तरफ से और निस्वार्थ भाव से ही हो सकता है। जब दूसरो की खुशी आपकी खुशी से बढ़कर है और जब बातों की गहराइयो को आप समझने लगते है तब प्यार का असली अर्थ आप समझ पाते है।बस इन सब को पहचानने और अपनाने की ज़रूरत है।

निशा- इन सब के बारे में मुझे सोचना पड़ेगा।
समीर - ज़रूर सोचना ।मैं चलता हूँ।

निशा उसकी बातों में खो जाती है।उसे उन बातों की सच्चाई मेहसुस हो रही थी।उसने प्यार के बारे में कभी नही सोचा था।अब उसे अगले दिन समीर से मिलने का इंतेज़ार था। उसे कुछ कहना था उससे।

अगली सुबह।
समीर -हेल्लो निशा।
निशा- हेल्लो समीर। कही जा रहे हो?
समीर- अरे हां।मैं तुम्हे बताना भूल गया की मेरा एक महीने का ही कोर्स था।अब मेरे जाने का समय हो गया। मैं आज ही निकल रहा हूँ।अच्छा हुआ तुम मुझे यहां मिल गयी। पता नही फिर कब मिलना होता।
निशा- वापस कब आओगे तुम?
समीर -अभी कुछ कह नही सकता। मौसम के हिसाब से अलग अलग जगह विभिन्न पक्षियों को देखने जाता हु मैं। क्या पता कब कहा पहुँच जाऊं!
निशा- तुम पहले बता देते तो अच्छा रहता।
समीर- मेरा प्रोजेक्ट जल्दी खत्म हो गया।इसलिए जाना पड़ेगा। मेरी ट्रेन का समय हो गया हैं। मैं चलता हूँ।
अपना ख्याल रखना।

निशा- बाय!....

इसके आगे निशा कुछ बोल नही पाई या शायद कुछ बोलना नही चाहती थी।वह उसे जाते हुए देख रही थी। पिछले एक महीने मे समीर उसकी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन गया था।वो शायद कुछ कहना चाहती थी, कुछ समय और बिताना चाहती थी पर उसे रोका नही।
हमारी निशा को प्यार नही हो सकता था।वो उसके लिए शायद बनी ही नही थी। पर उसको प्यार और विश्वास की नई परिभाषा मिली थी।
समीर ने अपनो और परायो मे अंतर सीखा दिया था। कुछ लोगो को खुश रहने के लिए साथ रहने की ज़रूरत नही है।यादें और आदतों के सहारे भी वो ज़िन्दगी में बने रहते है।

जाते-जाते वो हमारी निशा को बदल गया था।हमारी बेपरवाह निशा को लोगो की परवाह होने लगी थी।और उसकी भूरी आखों ने दुनिया के बहुत सारे नए रंग देख लिए थे।उसकी आंखो में किसी की शख्सियत उतर गयी थी। वो तो दूर चले गया था पर उसकी बातें निशा के दिलो-दिमाग में हमेशा -हमेशा के लिए घर कर गयी थी।अगर बेपरवाह होने से लोगो से धोके नही मिलते तो दिल के करीब भी तो कोई नही आ पाता।
किसी ने सच ही कहा है।
It's always better to be loved or cared rather than never ever caring for anyone in your life.
अलविदा

Episode 5


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निशा - मदद ? तुम मेरी मदद कैसे कर सकते हो ?
समीर - तुम एक बार भरोसा तो कर के देखो शायद सिर्फ़ मैं ही तुम्हारी मदद कर सकता हूँ!तुम एक बार मुझे बता के तो देखो कि आख़िर ऐसी कौनसी विचारों कि लहरें है जिसमे तुम बह जाती हो ? आख़िर विचारों की कौनसी नदी है जिसमें तुम डूब जाती हो ?ऐसा भी क्या हो गया है तुम्हारे साथ कि तुम खयालों मैं ओझल होकर खोयी-खोयी रहने लगी हो?

निशा - (हँसते हुए) अच्छा !इन सवालों का अगर तुम जवाब चाहते हो तो बताओ मुझे की 
हम कैसे किसी अनजान पर इतना विश्वास करने लगते है की अपनों को ही भूल जाते हैं?
और क्यों हमे बस वही पहलू दिखता है जो हम देखना चाहते हैं। और वो नहीं जो सच्चाई होती है? बातों की गहराइयों को हम क्यों नही समझना चाहते?
समीर - मुझे इन सब सवालों का जवाब देना तो चाहिए।पर तुम यह तो बताओ की तुम यह सब पूछ क्यों रही हो?

निशा - तुम ये समझ लो की हो सकता है यह बात मेरी अपनी ही ज़िंदगी से जुड़ी हो ,मेरी ही कोई दोस्त मुझसे ज़्यादा किसी और के झूठ पर विश्वास कर रही हो ।
समीर -अगर किसी को ऐसा लगता है की उसका दोस्त मुसीबत में है और दोस्त यह नही जानता की वह ग़लत है ।तो तुम्हारा फ़र्ज़ है उसे समझाना की उसने जो राह चुनी है वह गलत है और उस राह की कोई मन्ज़िल ही नही है।वो डगर उसे ऐसे मोड़ पर ले जाएगी जहां से वापस आना मुश्किल हो जाएगा

निशा - सलाह देना हमेशा आसान होता है!ऐसे केसे मैं खो दु अपने दोस्त को? हो सकता है वो मुझसे दोस्ती ही ख़त्म कर दे। तो इस से अच्छा तो यह है ना की मैं उसको उसकी ख़ुशी में ख़ुश रहने दूँ।

समीर - ज़रूर !तुम ऐसा कर सकती हो। पर सोचो क्या यह सही होगा की तुम सब कुछ जानते हुए भी अपने दोस्त को मुसीबत में छोड़ दो। तुम उसकी दोस्त हो तो तुम कैसे भी उसे समझाओ और वो भी तो तुम्हारी ही दोस्त है कब तक वो तुम्हारी बात नही सुनेगी।कभी न कभी तो वो होना ही है ना जिसका तुम्हे डर है। और सच बात तो यह है कि पूरी गलती तुम्हारी दोस्त की भी नही है। जब प्यार होता है तो इंसान कुछ नही सोचता।कोई रिश्ता नही देखता।बस प्यार मैं खोके मशगूल हो जाता है।और बस उस इंसान के खयालो मे ही खोया रहता है।और जब इस तरह की दोस्ती की कल्पना भी न की गयी हो तो वापस कदम खीचना बहुत मुश्किल हो जाता है।

निशा- तो क्या उसमे मेरी भी गलती है समीर? 
समीर-गलत कोई भी नही होता।बस नज़रिये का फर्क पड़ता है। हो सकता है जो तुम्हारे नज़र मैं सही हो वो दूसरे की नज़र मैं गलत हो।सबका नज़रिया अलग होता है।और हमे उसका ध्यान रखना चाहिए।
निशा - शायद तुम सही कह रहे हो। थैंक्स ! समीर - चलो तुम्हें मुझ पर भरोसा तो हुआ। 

निशा-मेरी क्लास का समय हो गया है । चलो चलते हुए बात करते हैं। 
समीर-हा चलो।
थोड़ी दूर जाकर।
समीर- यह सामने जो इमारत है। मैं यही पढाई करता हूँ।यहा ही सारा रिसर्च का काम होता है।एक महीने तक मैं यही मिलूंगा।
निशा - यह तो बहुत सुंदर है। समीर मुझे अब जाना चाहिए। हम फिर कभी बात करते है।
समीर - जैसा तुम ठीक समझो। 

अगली सुबह निशा और शानू कॉलेज में मिलते है।

शानू - हेल्लो निशा 
निशा - हेल्लो शानू! मैं तुझसे ही बात करने वाली थी। 
शानू - मुझसे ? मतलब तू अब मुझसे नाराज़ नही है?
निशा - नाराज़ तो मैं पहले भी नही थी बस तेरी फ़िक्र थी इसलिए तुझसे बात करना चाहती थी। मैं जानती हूँ कि तुझे मेरी बातें बेतुकी लगेगी पर उन्हें सुनना और फिर उन्हें समझने की कोशिश करना।

तू सोच की शुभ जैसा लड़का एक दिन में कैसे बदल सकता है? कैसे तू उस पर आँख बंद कर इतना विश्वास कर सकती है? कैसे तू उसके लिए अपनी दोस्ती में दरार आने दे सकती है
क्योंकि मैं जानती हूँ कि कहीं ना कहीं तू भी सच जानती है। मैंने समीर से भी उसके रीसर्च सेंटर जाते हुए यही बात करी थी और उसने भी मुझे यही कहा कि मुझे तुझसे बात करनी चाहिए।
शानू - हाँ हो सकता है तू सही है। मैं इस बारे में सोचूंगी। पर यह समीर कौन है, मेंने तो इसके बारे मे कभी सुना ही नही है !
जारी...


Episode - 4

निशा ने मुस्कुराकर कहा- मैं निशा हूँ। मै रोज़ यहीं आकर बेठती हूँ।तुम्हे तो पहले कभी यहां देखा ही नही। समीर- मैं बस यहां पक्षियों को देखने आता हूँ। और वो धूप से बचने के लिए दिन मे पानी का सहारा लेते हैं। उस समय यहां कोई नही होता। वैसे आज इस समय पर कैसे आना हुआ तुम्हारा? निशा - मुझे जिस भी पल शांति चाहिए होती है।और मैं खुदके साथ समय बिताना चाहती हूँ।तो मैं यहां आ जाती हूँ। समीर- और वो आसुं!अनमोल बूंदों को क्यों बहा रही थी तुम! बताओ कोई तकलीफ हो तो ? निशा- मैं ठीक हूँ !कुछ नही हुआ। अच्छा मैं चलती हूँ। माँ घर पर इंतज़ार कर रहीं होगी। समीर- फिर मिलेंगे। निशा - पक्षियों के पास, सुंदर नज़ारों के बीच कभी मौका आया तो ज़रूर मिलेंगे। निशा मन ही मन बहुत खुशी महसूस कर रही थी। आप यह ना समझे की यह प्यार है!और यह भी नही की अब यह कहानी प्रेम दर्शाएगी। हम आपको किसी और ही यात्रा पर लेकर जाने वाले हैं। निशा घर पहुच कर अपनी माँ के पास बेठ जाती है। माँ उसकी खुशी का कारण पूछती है। निशा - कुछ नही माँ। कॉलेज से निकली थी तब बहुत गुस्से मे थी। तालाब किनारे बैठने से अच्छा महसूस हो रहा है। माँ- प्राकृतिक सौंदर्य से ज़्यादा शांति ,मन को कोई नही दे सकता निशा। निशा बस सिर हिला देती है। आगे कुछ नही कहती।क्योंकि उसकी खुशी की वजह कुछ और ही थी। अगले दिन निशा को कॉलेज मे शानु मिलती है। शानु- कब तक गुस्सा रहेगी यार। रात को मैसेज का रिप्लाय भी नही दिया तूने। निशा- जब दोस्त आपके दुश्मनों से हाथ मिला लें तो वो आपके दोस्त नही रह जाते। उनमे कहीं न कहीं से आपसे विपरीत विचार आने लगते हैं।तो ऐसे दोस्त होने से अच्छा मैं अकेली ही रह लूंगी। शानु- नही यार !ऐसा नही है। शुभ दिल का अच्छा है। बस यहाँ उसके बाकी दोस्तो के बहकावे मे आकर गलत काम कर देता है। कल उसने बताया की मुझसे बस दोस्ती ही चाहता है। कोई गलत इरादा नही है उसका। निशा- दोस्ती से महंगी घड़ी का क्या रिश्ता है? दोस्ती से बिस्तर तक के बीच ज़्यादा दूरी नही रह जाती। घड़ी फिर गुलाब और उसके बाद दो तीन सरप्राइज़ बस ,उसके बाद तु उसे मना नही कर पाएगी। तु केसे किसी के चंगुल मे इतनी आसानी से आ सकती है? छोड़!तुझे समय आने पर ही पता चलेगा। मैं जा रही शानु। दुआ करूंगी की तुझे जल्दी समझ आ जाए । शानु- मैं गलत नही कह रही निशा। सुन तो! निशा उसकी बातों को अनसुना कर चली जाती है। शांति के लिए वो लाइब्रेरी जाती है और पेड़- पोधो के बारे मे पढ़ने लगती है। कुछ देर बाद! - क्या पढ़ रही हो? निशा को जानी पहचानी आवाज़ सुनाई देती है। उसने पलटकर देखा। समीर उसके पीछे खड़ा था। निशा उसे वहां देखकर चकित रह गयी। निशा- तुम यहा क्या कर रहे हो? आस पास के लोग उसे घूरने लगे।निशा ने बाहर चलने का इशारा किया। निशा- तुम मेरे कॉलेज मे क्या कर रहे हो? समीर- मैं यही से पार्ट टाइम समर कोर्स कर रहा हूँ। निशा- अच्छा हुआ तुम मिल गए। चलो कॉफी पीने चलते है| समीर - थोड़ी देर बाद मिलते है।अभी मुझे कुछ काम है।जल्दी वापस आऊंगा। निशा - मैं यही आस पास ही रहूंगी। आ जाना तुम समीर निकल जाता है। निशा उसका इंतज़ार करने लगती है।उसे महसूस होता है की शानु को शुभ से बचाना उसका ही काम है। वो शानु को बर्बाद होने के लिए नही छोड़ सकती। कॉलेज लाइफ मे अक्सर सुनने को मिलता है की आज़ादी पाकर जोड़े अपनी हदे पार कर देते है। रिश्ता तो ज़्यादा दिन नही टिकता।पर उससे हुए नुकसान ताउम्र आपका पीछा नही छोड़ते। इसीलिए हमेशा आगे का सोचकर ही कोई कदम उठाना चाहिए।जिससे बाद मे आपके माता-पिता को शर्मसार न होना पड़े। समीर- तुम बार-बार कहाँ खो जाती हो।क्या हो गया अब! निशा- कैंटीन चलते है।फिर बात करेंगे। समीर- चलो फिर! केन्टीन पहुचकर दोनो एक कोने मे जाकर बेठ गए। समीर- अब बताओ।क्या हुआ? इतनी आसानी से निशा किसी से अपनी निजी ज़िन्दगी की बातें नही करती ।इसीलिए उसे टाल देती है। निशा- जाने दो।कुछ नही ।तुम काफी पिओगे? समीर- मेंने अभी पी है।तुम ही पीलो निशा काफी लेकर बैठ जाती है। तुम्हारे घर मे कौन- कौन है? समीर- मेरे घर मे मैं ,जिगर ,पवन और नीरव है। निशा- इतने सारे भाई है तुम्हारे? समीर- नही तुम गलत समझ रही हो।जिगर खरगोश है, पवन मेरा तोता और नीरव मेरे कछुए का नाम है। निशा-(हस्ते हुए) यह तो बहुत ही अच्छा परिवार है तुम्हारा। ना कोई ज़्यादा काम, ना ही दूसरों के खाने पीने की चिंता। समीर- हां!वो तो है पर मेरा घर यहा से 200किमी दूर पंजाब मे है। वहां मेरा पूरा परिवार है।वहा सब साथ रहते है। अब बताओ तुम! क्यों इतनी दुखी रहती हो? दुखी रहना होबी है क्या तुम्हारी? निशा- नही तो ! मेरी होबी तो भारतीय लेखको की कहानी कविता पढना है। समीर- भारतीयों को कौन पड़ता है आजकल!फॉरेन राइटर्स का जमाना है यह तो। निशा- मेरा मानना है की अगर हम भारतीय ही हिन्दी या भारतीय लेखको को नही पढ़ेंगे।तो हमारे लेखक बनने के बाद हमारी रचनाओं को कौन पढ़ेगा। हमे अपनी मातृभाषा की रक्षा स्वयं करनी पड़ेगी।इसीलिए मैं भारतीय लेखको को ज़्यादा पसन्द करती हूँ। और जहां तक दुखी होने की बात है,दुखी रहने का शौक किसे हो सकता है? जब परेशानियों और कठनाइयों के कारण आगे के रास्ते दिखने बन्द हो जाते है। तो मैं अक्सर ऐसे ही सोच मे पड जाती हूँ। समीर-(टोकते हुए) मैं कुछ मदद करूँ? जारी......

Episode 3




वेसे भीे अमीरी और कामयाबी के आगे सच्चाई और प्यार की कोई औकात नही रह जाती।कालेज के सारे अमीर लड़के अपनी महंगी गाड़ियों से निशा और शानु को पाना चाहते है। कोई केसे पैसों के आगे झुक सकता है।और वेसे भी मतलब और बेईमानी से त्रस्त दुनिया से दूरी ही भली है।

रोज़ की तरह निशा अपने घर के पास वाले तालाब के किनारे बैठ जाती है ।और पास की हरियाली और बत्तख के बच्चों को निहारने लगती है। लोगो के मुंह से निकले अपशब्द सुनने से बेजुबानों के बीच सुकून की ज़िन्दगी बिताना काफी बेहतर है। घर पहुचकर वो समर के सफर को आगे पड़ना शुरू करती है। निशा भी एक कहानी लिखना चाहती है जिसमे समर की कहानी को एक अलग अंत मिले।उसकी मौत न हो। और उसकी आगे की ज़िन्दगी वो बयांन करे। वहां अफ़्रीकी हाथी के झुण्ड को ढूंढते हुए समर घने जंगल मे पहुंच गया। उसने देखा की वहां हाथी के बच्चे के पैर मेैं चोट है और वो खून से लथपथ है। आसपास हवाईजहाज हादसे की सालो पुराने अवशेष है जिसके एक टुकड़े से बच्चा चोटिल हो गया है। मदद के किये कोई नही है। समर उसके पास जाके उसको दुलारता है। और अपनी दवाई के डिब्बे मे से उसको पट्टी लगा देता है। फिर आगे अपने रास्ते निकल जाता है। खेर यह विमान हादसा तो अनहोनी थी और अनजाने मैं हुआ था ।पर इंसान जानवरो की ज़िन्दगी को तबाह करने का मौका वेसे भी नही छोड़ता।अपनी गलतियों या मज़े के बहाने उनके जीवन, रहन-सहन , परिवार , आवास और खान-पान सबको नष्ट करते जा रहे है।जिससे जाने अनजाने मे उनको प्रतिदिन लाखों परेशानियों का सामना करना पड़ता है । हमारी आदतों के बदलने तक उनकी ज़िन्दगी का सुधर पाना बहुत मुश्किल है। हमारे परिवर्तन से उनकी ज़िन्दगी मे सुधार होगा।और खुशहाल जीवन की परिकल्पना कर पाएंगे। इन्ही बातों को सोचते हुए समर आगे बढ़ता है और अपना सफर जारी रखता है।

निशा अगले दिन कॉलेज पहुचती है और उसे माहोल बदला हुआ लग रहा था। शुभ बड़ा खुश लग रहा था और शानु के तरफ देखके कुछ बोल रहा था। शानु बार-बार शीशे मैं खुद को निहार रही थी। जब निशा वहां पहुची तो..

शानु- हेलो निशा। केसी है? 
निशा - मै ठीक हूँ। पर इतना सज क्यों रही है?
शानु- तुझे बताना भूल गयी ।कल कॉलेज के बाद शुभ आया था मिलने।वो बहुत अच्छा लड़का है यार। आज मुझे ताज होटल ले जा रहा है। फिर हम घूमने भी जाएंगे।और उसने मेरे को यह घड़ी भी दी है। अच्छी है ना?
निशा- घड़ी छोड़। तु उसके बहकावे मे केसे आ सकती है? वो तुझे लालच दे रहा है। तेरा इस्तेमाल करके भूल जाएगा। मना करदे उसे।
शानु- मै तो जाउंगी।तु मुझसे जल मत। तेरे उससे लड़ाई है तो मे क्या करूँ। मुझसे तो माफी मांग ली उसने सारी हरकतों की। तु अपना देख ले। 
शुभ - चले शानु हम!
शानु- हा शुभ। ज़रुरु। 
बाय निशा। मिलते है कल

निशा इससे बहुत आहत हुई थी।उसकी सबसे अच्छी दोस्त ने दुश्मन का हाथ थाम लिया था।शानु पर उसे सबसे ज़्यादा भरोसा था। 

वेसे निशा भूल गयी थी की जब अपने ही अनजान बन जाते है तो लोग किस दोस्ती और प्यार के दम पर खुश होने लगते है। समय आने पर ना तो प्यार के वादे ना उनके साथ बिताये हुए पलो की यादें कोई काम आती है । आपको अपने नए साथी ढूंढने पड़ते है या फिर किताबों को ही अपना हमसफ़र बना लो ।कम से कम धोका तो नही मिलेगा।

इन्ही सब बातों से मायूस होकर निशा कॉलेज से चली जाती है। वो जानती थी की शुभ का साथ शानु के लिए खतरनाक है।और वो उसे नुकसान पहुचा सकता है। पर इंसान के लिए जब पैसा प्यार से बड़ा हो जाए तो उसे कोई नही समझा सकता।और जब तक उसे नुकसान नही होता या सीख नही मिलती। वो सुधरने के बारे मे भी नही सोच सकता।

निशा तालाब के किनारे बेठ जाती है। दिन का समय होने के कारण वहां कोई नही था और निशा के आसुं बहने लगे थे। उसे ज़िन्दगी का सबसे बड़ा झटका लगा था। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था और वो बत्तखों को घूर रही थी।तभी एक आवाज़ उसको सुनाई देती है।

~तुम्हे पता है तुम्हारे गुस्से से उनपर असर पड़ रहा है !
निशा उस लड़के को देखती है जो उसके पास खड़ा है। उसे उसके आने की आहट भी नही हुई। इन बिचारी बत्तखों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो तुम इन्हें डरा रही हो! ये स्पेन की बत्तख की प्राजति है।साल मेएक बार यहां आते है। यह बहुत जल्दी डर जाते है। प्यार से देखो नही तो उड़ जाएंगे। 
इतना कहकर वो जाने लगता है।
निशा- तुम्हे इनके बारे मे इतना केसे पता?और कोन हो तुम?
लड़का~ मुझे पक्षियों और जानवर से बहुत प्यार है।मैं दुर्लभ जीवों की तलाश मे घूमता हूँ।
और मेरा नाम समीर है।
और तुम्हारा?.......
जारी।

S12 E 19 - The one with Aarushi's birthday post"

उस खास दोस्त के लिए जिसने हमेशा साथ दिया है।  साथ निभाने के लिए शुक्रिया।  इसको मुस्कुराहट के साथ पढ़े।  उम्मीद है, तुम्हे यह पसंद...